Thursday 20 February 2014

Haar Rup Main Sai Ram

साईं बाबा चमत्कार

दामोदर को सांप के काटने और साईं बाबा द्वारा बिना किसी मंत्र-तंत्र अथवा दवा-दारू के उसके शरीर से जहर का बूंद-बूंद करके टपक जाना, सारे गांव में इसी की ही सब जगह पर चर्चा हो रही थी|

गांव के कुछ नवयुवकों ने द्वारिकामाई मस्जिद में आकर साईं बाबा के अपने कंधों पर बैठा लिया और उनकी जय-जयकार करने लगे| सभी छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष साईं बाबा की जय-जयकार के नारे पूरे जोर-शोर से लगा रहे थे|

"हम तो साईं बाबा को इसी तरह से सारे गांव में घुमायेंगे|" नयी मस्जिद के मौलवी ने कहा - "मैंने तो पहले ही कह दिया था कि यह कोई साधारण पुरुष नहीं हैं| यह इंसान नहीं फरिश्ते हैं| यह तो शिरडी का अहोभाग्य है कि जो यह यहां पर आ गए हैं|"

"हां, हां, हम साईं बाबा का जुलूस निकालेंगे|" अभी उपस्थित व्यक्ति एक स्वर में बोले|

फिर उसके बाद सब जुलूस निकालने की तैयारी करने में लग गये|

यह सब देख-सुनकर पंडितजी को बहुत ज्यादा दुःख हुआ| पूरे गांव में केवल वे ही एक ऐसे व्यक्ति थे जो नये मंदिर के पुजारी के साथ-साथ पुरोहिताई और वैद्य का भी कार्य किया करते थे| यह बात उनकी समझ में जरा-सी भी नहीं आयी कि साईं बाबा के हाथ फेरने से ही जहर कैसे उतर सकता है? इस बात को वह ढोंग मान रहे थे| इसमें उनको साईं बाबा की कुछ चाल नजर आ रही थी| वह गांव के लोगों का इलाज भी किया करते थे| साईं बाबा के प्रति उनके मन में ईर्ष्या पैदा हो गयी थी|

साईं बाबा एक चमत्कारी पुरुष हैं, पंडितजी इस बात को मानने के लिए बिल्कुल भी तैयार न थे| वह ईर्ष्या में भरकर साईं बाबा के विरुद्ध उल्टी-सीधी बातें बोलने लगे|

सब जगह केवल साईं बाबा की ही चर्चा थी| पर, पंडितजी की ईर्ष्या का कोई ठिकाना न था|

"जरूर कोई महात्मा हैं|"

"सिद्धपुरुष हैं|"

"देखो न ! कैसे-कैसे चमत्कार करता है !"

अब आस-पास के लोग जिन्होंने साईं बाबा के चमत्कार के बारे में सुना, उनके दर्शन करने के लिए आ रहे थे| उधर पंडितजी न नाग के जहर को शरीर से बूंद-बूंद कर टपक जाने की बात सुनी तो आगबबूला हो गये-और गांव के चौपाल पर बैठे लोगों से बोले-

"यह गांव ही मूर्खों से भरा पड़ा है|" पंडित ने क्रोध से कांपते हुए कहा - "वह कल का मामूली छोकरा भला सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है ? कई-कई जन्म बीत जाते हैं साधना करते हुए, तब कहीं जाकर सिद्धि प्राप्त होती है| नाग का जहर तो संपेरे भी उतार देते हैं| मुझे तो पहले ही दिन पता चल गया था कि वह कोई संपेरा हैं| एक संपेरों की ही ऐसी कौम होती है, जिनका कोई दीन-धर्म नहीं होता| वह भला सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है?"

"आप बिल्कुल ठीक कहते हैं पंडितजी!"-एक व्यक्ति ने कहा - "पन्द्रह-सोलह वर्ष का छोकरा है और गांव वालों ने उसका नाम रख दिया है 'साईं बाबा'| यह साईं बाबा का क्या अर्थ होता है, पंडितजी ! जरा हमें भी समझाइये?"

"इसका अर्थ तो तुम उन्हीं लोगों से जाकर पूछो, जिन्होंने उसका यह नाम रखा है|" पंडितजी ने ईर्ष्या में भरकर कहा| फिर रहस्यपूर्ण स्वर में बोले-"जाओ, पुरानी मस्जिद में देखकर आओ, वहां पर क्या हो रहा है?"

तभी अचानक झांझ, मदृंग, ढोल और अन्य वाद्यों की आवाज तथा लोगों का कोलाहल सुनकर पंडितजी चौंक गये| बाजों की आवाज के साथ-साथ जय-जयकार के नारे भी सुनायी दे रहे थे|

उन्होंने देखा, सामने से एक जुलूस आ रहा था|

"पंडितजी! बाहर आइए|साईं बाबा की शोभायात्रा आ रही है|" एक व्यक्ति ने बड़े जोर से चिल्लाकर कहा|

पंडितजी उस नजारे को देखकर बड़े हैरान थे| पालकी के आगे-आगे कुछ गांववासी झांझ, मंजीरे और ढोल बजाते हुए चल रहे थे| उनके पीछे एक पालकी में साईं बाबा बैठे थे| दामोदर और उसके साथियों ने पालकी अपने कंधों पर उठा रखी थी| उनके साथ गांव के पटेल भी थे और नई मस्जिद के इमाम भी| साथ ही प्रतिष्ठित लोगों की भीड़ भी चल रही थी| इन सबके साथ गांव की बहुत सारी महिलाएं भी थीं| ऐसा लगता था कि जैसे सारा गांव ही उमड़ पड़ा हो| सभी साईं बाबा की जय-जयकार कर रहे थे|

साई बाबा का ऐसा स्वागत-सत्कार देखकर पंडितजी के होश उड़ गये, मारे क्रोध के बुरा हाल हो गया| वह गला फाड़कर चिल्लाकर बोले-"सत्यानाश! ये ब्राह्मण के लड़के इस संपेरे के बहकावे में आ गए हैं| यह बहुत बड़ा जादूगर है| नौजवानों को इसने अपने वश में कर रखा है| यह बहुत बड़ा जादूगर है| नौजवानों को इसने अपने वश में कर रखा है| देख लेना, एक दिन यह सब भी इसी की तरह शैतान बन जायेंगे| हे भगवान! क्या मेरे भाग्य में यह दिन भी देखना बाकी था?"

जैसे-जैसे शोभायात्रा आगे बढ़ती जा रही थी और उसमें शामिल होने वाले लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा रही रही, साईं बाबा कि पालकी के आगे-आगे नवयुवक नाचते, गाते और जय-जयकार से वातावरण को गूंजा रहे थे|

अपने-अपने घरों के दरवाजों पर खड़ी स्त्रियां फूल बरसाकर शोभायात्रा का स्वागत कर रही थीं|

पंडितजी से साईं बाबा का यह स्वागत देखा न गया| वह गुस्से में पैर पटकते हुए घर के अंदर चले गए और दरवाजा बंद करके, कमरे मैं जाकर पलंग पर लेट गए और मन-ही-मन साईं बाबा को कोसने लगे| कैसा जमाना आ गया है, इस कल के छोकरे ने तो सारे गांव को बिगाड़कर रख दिया है| पंडितजी को साईं बाबा अपना सबसे बड़ा दुश्मन दिखाई दे रहे थे| जुलूस गांवभर में घूमता रहा और हर जबान पर साईं बाबा की चर्चा होती रही|

शोभायात्रा घूमकर वापस लौट आयी|साईं बाबा के पास कुछ ही व्यक्ति रह गए| वह चुपचाप आँखें बंद किये बैठे थे|

"बाबा, जब आप पहले-पहल गांव में आए थे और लोगों ने आपसे पूछा था कि आप कौन हैं, तो आपने कहा था, मैं साईं बाबा हूं| साईं बाबा का क्या अर्थ होता है?" दामोलकर ने पूछा| उसके इस प्रश्न पर साईं बाबा मुस्करा दिए|

"देखो, दो अक्षर का शब्द है-सा और ईं| सा का अर्थ है देवी और ईं का अर्थ होता है मां| बाबा का अर्थ होता है पिता| इस प्रकार साईं बाबा का अर्थ हुआ-देवी,माता और पिता|"

"जन्म देने वाले माता-पिता के प्रेम में स्वार्थ की भावना निहित होती है| जबकि देवी माता-पिता के स्नेह में जरा-सा भी स्वार्थ नहीं होता है| वह तुम्हारा मार्गदर्शन करते हैं और तुम्हें प्रेरणा देते हैं| आत्मदर्शन, आत्मज्ञान की सीधी और सच्ची राह दिखाते हैं|" साईं बाबा ने समझाते हुए कहा - "वैसे साईं बाबा को प्रयोग परमपिता परमात्मा, ईश्वर, अल्लाताला और मालिक के लिए भी किया जाता है|"

"आप वास्तव में ही साईं बाबा हैं|" सभी उपस्थित लोगों ने एक स्वर में कहा - "आपने हम सभी को सही रास्ता दिखाया है| सबको आपने ईश्वर की भक्ति के मार्ग पर लगाया है|"

"यह मनुष्य शरीर न जाने कितने पिछले जन्मों के पुण्य कर्मों को करने के पश्चात् प्राप्त होता है| इस संसार में जितने भी शरीरधारी हैं, उन सबमें केवल मनुष्य ही सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी है| वह इस जन्म में और भी अधिक पुण्य कर्म कर सकता है| उसके पास  बुद्धि है, ज्ञान है और इसके बावजूद भी वह मानव शरीर पाकर मोह-माया और वासना के दलदल में फंस जाता है| इससे छुटकारा पाना असंभव हो जाता है| उसका मन रात-दिन वासना और स्वार्थ में लिप्त रहता है| धन-सम्पत्ति पाने के लिए वह कैसे-कैसे कार्य नहीं करता है| मनुष्य को इस दलदल से यदि कोई मुक्ति दिला सकता है, तो वह है गुरु... केवल सद्गुरु|

लेकिन आज के समय में सच्चा गुरु कहा मिलता है| सच्चे इंसान ही बड़ी मुश्किल से मिलते हैं| फिर सच्चे गुरु का मिलना तो और भी अधिक कठिन है|"

"सच्चे गुरु कि पहचान क्या है साईं बाबा?" एक व्यक्ति ने पूछा|

"सच्चा गुरु वही है, जो शिष्य को अच्छाई-बुराई का भेद बता सके| उचित-अनुचित का अंतर बता सके| आत्मप्रकाश, आत्मज्ञान दे सके| जिसके मन में रत्तीभर भी स्वार्थ की भावना न हो, जो शिष्य को अपना ही अंश मानता हो| वही सच्चा सद्गुरु है|" साईं बाबा ने बताया और फिर अचानक उन्हें जैसे कुछ याद आया, तो वह बोले - " आज तात्या नहीं आया क्या?"

"बाबा, मैं आपको बताना ही भूल गया| तात्या को आज बहुत तेज बुखार आया है|"

"तो आओ चलो, तात्या को देख आयें|" साईं बाबा ने अपने आसन से उठते हुए कहा| साथ ही अपनी धूनी में से चुटकी भभूति अपने सिर के दुपट्टे में बांधकर चल पड़े|

Sunday 9 February 2014

शिरडी वाले साईं बाबा : श्रद्धा का अटूट नाम

Shirdi Sai Babaजब हम पैदा होते हैं तो हमारी ना कोई जात होती है और ना ही कोई धर्म. मानव को बांटने का काम हम ही करते हैं. सामाजिक वर्गीकरण की इस दिवार में सबसे ज्यादा नुकसान समाज के उपेक्षित वर्ग को होता है. हमारे साधु-संतों और समाज सुधारकों ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि समाज में एकता आए. समाज में इसी एकता के भाव को सदृढ़ करने की राह में उल्लेखनीय कार्य के लिए हम शिरडी के साईं बाबा को याद करते हैं.

शिरडी के साईं बाबा को कोई चमत्कारी तो कोई दैवीय अवतार मानता है लेकिन कोई भी उन पर यह सवाल नहीं उठाता कि वह हिंदू थे या मुसलमान. श्री साईं बाबा जाति-पांति तथा धर्म की सीमाओं से ऊपर उठ कर एक विशुद्ध संत की तस्‍वीर प्रस्‍तुत करते हैं, जो सभी जीवात्माओं की पुकार सुनने व उनके कल्‍याण के लिए पृथ्‍वी पर अवतीर्ण हुए.

“सबका मालिक एक है” के उद्घोषक शिरडी के साईं बाबा ने संपूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कराया. उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया और कई ऐसे चमत्कार किए जिनसे लोग उन्हें भगवान की उपाधि देने लगे. आज साईं बाबा के भक्तों की संख्या को लाखों-करोड़ों में नहीं आंका जा सकता. आज साईं बाबा का महासमाधि पर्व है. उन्होंने इसी दिन सन 1918 में अपना देह त्याग किया था.

SAI BABAसाईं बाबा का जन्म 28 सितंबर, 1836 को हुआ था. हालांकि उनके जन्म स्थान, जन्म दिवस या उनके असली नाम के बारे में सही-सही कोई नहीं जानता है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, साईं का जीवन काल 1838-1918 के बीच है. साई एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और फकीर थे, जो धर्म की सीमाओं में नहीं बंधे थे. सच तो यह है कि उनके अनुयायियों में हिंदू और मुसलमानों की संख्या बराबर थी. श्रद्धा और सबूरी यानी संयम उनके विचार-दर्शन का सार है. उनके अनुसार कोई भी इंसान अपार धैर्य और सच्ची श्रद्धा की भावना रखकर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है.

कहा जाता है कि सोलह वर्ष की अवस्था में साईं महाराष्ट्र के अहमदनगर के शिरडी गांव पहुंचे और जीवनपर्यन्त उसी स्थान पर निवास किया. कुछ लोग मानते थे कि साईं के पास अद्भुत दैवीय शक्तियां थीं, जिनके सहारे वे लोगों की मदद किया करते थे. लेकिन खुद कभी साईं ने इस बात को नहीं स्वीकारा. वे कहा करते थे कि मैं लोगों की प्रेम भावना का गुलाम हूं. सभी लोगों की मदद करना मेरी मजबूरी है. सच तो यह है कि साईं हमेशा फकीर की साधारण वेश-भूषा में ही रहते थे. वे जमीन पर सोते थे और भीख मांग कर अपना गुजारा करते थे. कहते हैं कि उनकी आंखों में एक दिव्य चमक थी, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी. साई बाबा का एक ही मिशन था – लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास पैदा करना.

sai baba1918 में विजयादशमी के कुछ दिन पूर्व साईंनाथ ने अपने परमप्रिय भक्त रामचंद्र पाटिल से विजयादशमी के दिन तात्या के मृत्यु की भविष्यवाणी की. यहां यह जानना जरूरी है कि साईबाबा शिरडी की निवासिनी वायजाबाई को मां कहकर संबोधित करते थे और उनके एकमात्र पुत्र तात्या को अपना छोटा भाई मानते थे. साईनाथ ने तात्याकी मृत्यु को टालने के लिए उसे जीवन-दान देने का निर्णय ले लिया. 27 सितम्बर, 1918 से साईबाबा के शरीर का तापमान बढने लगा और उन्होंने अन्न भी त्याग दिया.


हालांकि उनकी देह क्षीण हो रही थी, लेकिन उनके चेहरे का तेज यथावत था. 15 अक्टूबर, 1918 को विजयादशमी के दिन तात्या की तबियत इतनी बिगड़ी कि सबको लगा कि वह अब नहीं बचेगा, लेकिन दोपहर 2.30 बजे तात्या के स्थान पर बाबा नश्वर देह को त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए और उनकी कृपा से तात्या बच गए.

साईंबाबा अपनी घोषणा के अनुरूप 15 अक्टूबर, 1918 को विजयादशमी के विजय-मुहू‌र्त्त में शारीरिक सीमा का उल्लंघन कर निजधाम प्रस्थान कर गए. इस प्रकार विजयादशमी बन गया उनका महासमाधि पर्व. इस वर्ष यह तिथि 6 अक्टूबर को है. कहते हैं कि आज भी सच्चे साईं-भक्तों को बाबा की उपस्थिति का अनुभव होता है

Sai Sai Mera Sai

Sai Sai Bolo Re Sai Sai Ram

Thursday 16 January 2014

Sai reham nazar karna


Sumar Manva - Shirdi Ke Sai Baba


Sai Naath Tere Hazaaron Haath Song


'शिरडी' एक पवित्र धार्मिक स्थल

शिरडी
एक पवित्र धार्मिक स्थल है, जिसका आध्यात्मिक संत, योगी और फकीर साईं बाबा से घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिरडी महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले की राहटा तहसील के अंतर्गत आने वाला एक कस्बा है। बड़ी संख्या में यहाँ साईं बाबा के भक्त उनके मन्दिर में दर्शनों के लिए आते हैं। साईं बाबा के भक्तों में सभी जाति-धर्म-पंथ के लोग शामिल हैं। जहाँ हिन्दू बाबा के चरणों में हार-फूल चढ़ाते, समाधि पर दूबरखकर अभिषेक करते हैं, वहीं मुस्लिम बाबा की समाधि पर चादर चढ़ाकर दुआएँ माँगते हैं। कुल मिलाकर शिरडी सर्वधर्म समभाव के धार्मिक सह-अस्तित्व का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन यहाँ आने वाले भक्त तो इन सबके परे केवल मन में साईं बाबा के प्रति श्रद्धा और विश्वास के चलते खिंचे चले आते हैं।

स्थिति

साईं धाम के नाम से प्रसिद्ध शिरडी अहमदनगर-मनमाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 10 पर अहमदनगर से लगभग 83 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शिरडी कोपरगाँव से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। साईं बाबा का प्रसिद्ध और विशाल मन्दिर यहाँ है, जिसके दर्शनों के लिए सिर्फ़ भारत ही नहीं अपितु विदेशों से भी काफ़ी बड़ी संख्या में भक्तजन आते हैं। 'शिरडी ही साईं बाबा है और साईं बाबा ही शिरडी', एक दूसरे का प्रत्यक्ष पर्यायवाची होने के साथ-साथ यह आध्यामिक स्थान भी है। गोदावरी नदी पार करने के पश्चात मार्ग सीधा शिरडी को जाता है। आठ मील चलने पर जब यात्री नीमगाँव पहुँचते हैं तो वहाँ से शिरडी दृष्टिगोचर होने लगती है।

बाबा का समाधि मंदिर

शिरडी में साईं बाबा का समाधि मंदिर है। कई श्रद्धालु यहाँ बाबा की समाधि पर चादर चढ़ाते हैं। ये सवा दो मीटर लंबी और एक मीटर चौड़ी होती है। समान्य दिनों में भी यहाँ श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ होती है कि दर्शन में एक घंटे तो लग ही जाते हैं। गुरुवार को कई घंटे लग सकते हैं। समाधि मंदिर के अलावा यहाँ द्वारकामाई का मंदिर चावडी और ताजिमखान बाबा चौक पर साईं भक्त अब्दुल्ला की झोपड़ी है। साई बाबा ने शिरडी में 1918 में समाधि ली थी। इससे पहले वे कई दशक शिरडी में रहे और इस दौरान कई चमत्कार किए। लोग कहते हैं कि साई बाबा ने कहा था कि एक समय आएगा, जब शिरडी में दूर-दूर से लोग आएँगे। साईं मंदिर में चार समय आरती होती है। 'काकड़ आरती' (प्रातःकालीन), 'मध्याह्न आरती', 'धूप आरती' और 'सेज आरती'।[1]
शिरडी के साईं मंदिर में ट्रस्ट का अपना प्रसाद काउंटर है। यहाँ आने वाले भक्त पेड़े आदि वहीं से खरीद सकते हैं। मंदिर के अंदर कैमरा, मोबाइल आदि प्रतिबंधित है। इन्हें जमा करने के लिए बाहर काउंटर बने हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं। यात्री कहीं से भी प्रवेश कर सकते हैं। साईं बाबा महान संतथे। लोग उन्हें कबीर की श्रेणी में मानते हैं। अपने सरल संदेशों के कारण वे अमीर गरीब, हिन्दू औरमुस्लिम सबके बीच लोकप्रिय हैं। बाबा ने सभी जीवों के प्रति श्रद्धा रखने और सब्र करने का संदेश दिया। आज देश के हर शहर में साईं बाबा के मंदिर बन चुके हैं और देश भर से हर साल साईं भक्तों का शिरडी आने का सिलसिला चलता रहता है।

प्रसादालय

भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शिरडी का अपना एक अलग ही महत्व है, और ये महत्व पिछले थोड़े से वक्त में ही काफी बढ़ गया है। हर रोज तकरीबन 40 से 50 हजार श्रद्धालु साईं बाबा के दर्शनों के लिए शिरडी आते हैं। मुख्य मंदिर के अंदर और बाहर काफी अच्छी व्यवस्थाएँ की गई हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए भी बेहतर इंतजाम है। बाबा के दर्शन के साथ-साथ शिरडी में अगर कुछ और देखने लायक है तो वह है बोर्ड द्वारा तैयार किया गया नवीन प्रसादालय (डायनिंग हॉल)। एशिया के इस सबसे बड़े डायनिंग हॉल में एक बार में 5500 लोग बैठकर खाना खा सकते हैं। एक दिन में यहाँ 100,000 लोगों को भोजन कराने की व्यवस्था है। 7.5 एकड़ में फैले इस प्रसादालय को 240 मिलियन रुपए की लागत से तैयार किया गया है। शिरडी बोर्ड सालाना तकरीबन 190 मिलियन खाने पर ही खर्च करता है। प्रसादालय में खाने के दो तरह के कूपन मिलते हैं- पहला साधारण कूपन, जिसके लिए महज 10 रुपए चुकाने होते हैं और दूसरा वीआईपी कूपन, जो बस थोड़ा सा महंगा है। डायनिंग हॉल की एक और जो सबसे बड़ी खासियत है, वह है साफ-सफाई। सफाई का आलम यहाँ ये है कि एक मक्खी तक नजर नहीं आती। सेवा कार्य में लगे कर्मचारी भी साफ-सुथरे कपड़ों के साथ हाथों में दस्ताने पहनकर प्रसाद वितरित करते हैं। प्रसादालय तक जाने के लिए बोर्ड की तरफ से बस भी चलाई जाती है, लेकिन रास्ता इतनी लंबा भी नहीं है कि बस की जरूरत पड़े। श्रद्धालु अगर चाहें तो पैदल भी जा सकते हैं।[2]

(*.*) शिरडी साईं बाबा जीवन परिचय (*.*)

शिरडी के साईं बाबा

(जन्म- 28 सितम्बर, 1836 ई.; मृत्यु- 15 अक्टूबर1918शिरडीमहाराष्ट्र) एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु, योगी और फकीर थे। साईं बाबा को कोई चमत्कारी पुरुष तो कोई दैवीय अवतार मानता है, लेकिन कोई भी उन पर यह सवाल नहीं उठाता कि वह हिन्दू थे या मुस्लिम। साईं बाबा ने जाति-पांति तथा धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर एक विशुद्ध संत की तस्‍वीर प्रस्‍तुत की थी। वे सभी जीवात्माओं की पुकार सुनने व उनके कल्‍याण के लिए पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए थे। बाबा समूचे भारत के हिन्दू-मुस्लिम श्रद्धालुओं तथा अमेरिका और कैरेबियन जैसे दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले कुछ समुदायों के भी प्रिय थे।

जीवन परिचय

साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर, 1836 ई. में हुआ था। इनके जन्म स्थान, जन्म दिवस और असली नाम के बारे में भी सही-सही जानकारी नहीं है। लेकिन एक अनुमान के अनुसार साईं बाबा का जीवन काल 1838 से 1918 के बीच माना जाता है। फिर भी उनके आरंभिक वर्षों के बारे में रहस्य बना हुआ है। अधिकांश विवरणों के अनुसार बाबा एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बाद में एक सूफ़ी फ़क़ीर द्वारा गोद ले लिए गए थे। आगे चलकर उन्होंने स्वयं को एक हिन्दू गुरु का शिष्य बताया। लगभग1858 में साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य महाराष्ट्र के एक गाँव शिरडी पहुँचे और फिर आजीवन वहीं रहे। साईं बाबा मुस्लिम टोपी पहनते थे और जीवन में अधिंकाश समय तक वह शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में ही रहे, जहाँ कुछ सूफ़ी परंपराओं के पुराने रिवाज़ों के अनुसार वह धूनी रमाते थे। मस्जिद का नाम उन्होंने 'द्वारकामाई' रखा था, जो निश्चित्त रूप से एक हिन्दू नाम था। कहा जाता है कि उन्हेंपुराणोंभगवदगीता और हिन्दू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था।
नाम की उत्पत्ति
बाबा के नाम की उत्पत्ति 'साईं' शब्द से हुई है, जो मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- पूज्य व्यक्ति और बाबा, पिता के लिए एक हिन्दी शब्द।

अनुयायी

साई बाबा एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और फकीर थे, जो धर्म की सीमाओं में कभी नहीं बंधे। वास्तविकता तो यह है कि उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुस्लिमों की संख्या बराबर थी। श्रद्धा और सबूरी यानी संयम उनके विचार-दर्शन का सार है। उनके अनुसार कोई भी इंसान अपार धैर्य और सच्ची श्रद्धा की भावना रखकर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है।( सबका मालिक एक है) के उद्घोषक वाक्य से शिरडी के साईं बाबा ने संपूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कराया। उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया और कई ऐसे चमत्कार किए, जिनसे लोग उन्हें भगवान की उपाधि देने लगे। आज भी साईं बाबा के भक्तों की संख्या को लाखों-करोड़ों में नहीं आंका जा सकता।

शिरडी में आगमन

कहा जाता है कि सोलह वर्ष की अवस्था में साईं बाबा महाराष्ट्र के अहमदनगर के शिरडी गाँव पहुँचे थे और जीवन पर्यन्त उसी स्थान पर निवास किया। शुरुआत में शिरडी के ग्रामीणों ने पागल बताकर उनकी अवमानना की, लेकिन शताब्दी के अंत तक उनके सम्मोहक उपदेशों और चमत्कारों से आकर्षित होकर हिन्दुओं और मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या उनकी अनुयायी बन गई। कुछ लोग मानते थे कि साईं के पास अद्भुत दैवीय शक्तियाँ थीं, जिनके सहारे वे लोगों की मदद किया करते थे। लेकिन खुद कभी साईं ने इस बात को नहीं स्वीकारा। उनके चमत्कार अक्सर मनोकामना पूरी करने वाले रोगियों के इलाज़ से संबंधित होते थे। वे कहा करते थे कि मैं लोगों की प्रेम भावना का गुलाम हूँ। सभी लोगों की मदद करना मेरी मजबूरी है। सच तो यह है कि साईं हमेशा फकीर की साधारण वेश-भूषा में ही रहते थे। वे जमीन पर सोते थे और भीख माँग कर अपना गुजारा करते थे। कहते हैं कि उनकी आंखों में एक दिव्य चमक थी, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी। साई बाबा का एक ही लक्ष्य था- "लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास पैदा करना"।

बाबा की शिक्षा

  • साईं बाबा ने हर जाति और धर्म के लोगों को एकता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने सदा ही सभी से एक ही बात कही- सबका मालिक एक
  • जाति, धर्म, समुदाय, इत्यादि व्यर्थ बातों में ना पड़कर आपसी मतभेद को दूर कर आपस में प्रेम और सद्भावना से रहना चाहिए, क्योंकि सबका मलिक एक है। यह साईं बाबा की सबसे बड़ी शिक्षा और संदेश है।
  • साईं बाबा ने यह संदेश भी दिया कि हमेशा श्रद्धा, विश्‍वास और सबूरी (सब्र) के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  • लोगों में मानवता के प्रति सम्मान का भाव पैदा करने के लिए साईं ने संदेश दिया है कि किसी भी धर्म की अवहेलना नहीं करें। उन्होंने कहा है कि सर्वधर्म सम्मान करते हुए मानवता की सेवा करनी चाहिए, क्योंकि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।
  • साईं सदैव कहते थे कि जाति, समाज, भेदभाव को भगवान ने नहीं बल्कि इंसान ने बनाया है। ईश्वर की नजर में कोई ऊंचा या नीचा नहीं है। अत: जो कार्य स्वयं ईश्वर को पसंद नहीं है, उसे इंसानों को भी नहीं करना चाहिए, अर्थात जाति, धर्म, समाज से जुड़ी मिथ्या बातों में ना पड़कर प्रेमपूर्वक रहें और गरीबों और लाचार की मदद करें, क्योंकि यही सबसे बड़ी पूजा
  • बाबा जी का यह कहना था कि जो व्यक्ति गरीबों और लाचारों की मदद करता है, ईश्वर स्वंय उसकी मदद करते हैं।
  • साईं बाबा ने सदैव माता-पिता, बुजुर्गों, गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करने की सीख दी। उनका कहना था कि ऐसा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे हमारे जीवन की मुश्किलें आसान हो जाती हैं।
  • साईं के सिद्धांतों में दया और विश्वास अंतर्निहित है। उनके अनुसार अगर इन दोनों को अपने जीवन में समाहित किया जाए, तभी भक्ति का अनुराग मिलता है।

उपदेश

साईं बाबा के उपदेश अक्सर विरोधाभासी दृष्टांत के रूप में होते थे और उसमें हिन्दुओं तथा मुस्लिमों को जकड़ने वाली कट्टर औपचारिकता के प्रति तिरस्कार तथा साथ ही ग़रीबों और रोगियों के प्रति सहानुभूति परिलक्षित होती थी। शिरडी एक प्रमुख तीर्थ स्थल है तथा उपासनी बाबा और मेहर बाबा जैसी आध्यात्मिक हस्तियाँ साईं बाबा के उपदेशों को मान्यता देती हैं।
  ॥ अनंत कोटी ब्रम्हांडनायक राजाधिराज योगीराज परं ब्रम्हं श्री सच्चिदानंद सदगुरु श्री साईनाथ महाराज की जय ॥

अनमोल वचन

साईं बाबा के कुछ अनमोल वचन निम्नलिखित[2] हैं-
  • आने वाला जीवन तभी शानदार हो सकता है, जब तुम ईश्वर के साथ पूर्ण सद्भाव में जीना सीख जाओगे।
  • मनुष्य अपने स्वाद की तृप्ति के लिए प्रकृति में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में बदलाव चाहता है, जिससे उनमें निहित जीवन के बहुत सार अंत को प्राप्त होते हैं।
  • तुम्हें एक कमल की तरह होना चाहिए, जो सूर्य के प्रकाश में अपनी पंखुड़ियों को खोल देती है। कीचड़ में जन्म लेने या अपने अन्दर जल की उपस्थिति से अप्रभावित जो इसे जीवित रखता है।
  • मनुष्य अनुभव के माध्यम से सीखता है, और आध्यात्मिक पथ विभिन्न प्रकार के अनुभवों से भरा है। उसे कई कठिनाइयों और बाधाओं का सामना करना होगा, और वे सारे अनुभव जो उसे प्रोत्साहित करने और सफाई की प्रक्रिया पूरा करने लिए जरुरी हैं।
  • सभी कार्य विचारों के परिणाम होते हैं, इसलिए विचार मायने रखते हैं।
  • मनुष्य खो गया है और एक जंगल में भटक रहा है, जहाँ वास्तविक मूल्यों का कोई अर्थ नहीं है। वास्तविक मूल्यों का मनुष्य के लिए तभी अर्थ हो सकता है, जब वह आध्यात्मिक पथ पर कदम बढ़ाये। यह एक ऐसा पथ है, जहाँ नकारात्मक भावनाओं का कोई उपयोग नहीं।
  • तुम्हें अपने दिनों को गीतों में बिताना चाहिए। तुम्हारा संपूर्ण जीवन एक गीत की तरह हो।
  • यह दुनिया प्यार के प्रवाह से शुद्ध हो। तब आदमी, उथल-पुथल की स्थिति जो उसने अपने जीवन के पिछले तरीकों के द्वारा, उन सभी सामग्री, हितों और सांसारिक महत्वाकांक्षा के साथ बनाया है कि बजाय शांति से रह सके।
  • ब्रह्मांड की तरफ देखो और ईश्वर की महिमा का मनन करो। सितारों को देखो, उनमें से लाखों, रात को आसमान में चमकते, सब एकता के संदेश के साथ, ईश्वर के स्वभाव के अंग हैं।
  • आप अपने चारों ओर देखते हो, इससे गुमराह मत हो, या आप जो भी देखते हो, उससे प्रभावित होते हो। आप एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जो गलत रास्ते, झूठे मूल्यों और झूठे आदर्शों से भरा भ्रम का एक खेल का मैदान है। लेकिन आप उस दुनिया का हिस्सा नहीं हो।
  • एक घर ठोस नींव पर बनाया जाना चाहिए, यदि इसे टिकाऊ बनाना है। यही सिद्धांत आदमी पर लागू भी होता है, अन्यथा वह भी नरम जमीन में वापस धंस जायेगा और भ्रम की दुनिया द्वारा निगल लिया जायेगा।
  • दुनिया में क्या नया है? कुछ भी नहीं। दुनिया में क्या पुराना है? कुछ भी नहीं। सब कुछ हमेशा रहा है और हमेशा रहेगा।
  • जीवन एक गीत है, इसे गाओ। जीवन एक खेल है, इसे खेलो। जीवन एक चुनौती है, इसका सामना करो। जीवन एक सपना है, इसे अनुभव करो। जीवन एक यज्ञ है, इसे पेश करो। जीवन प्यार है, इसका आनंद लो।
  • एक दूसरे से प्रेम करो और उच्च स्तर तक जाने के लिए दूसरों की मदद करो, सिर्फ प्यार देकर। प्रेम संक्रामक और घावों को भरने वाली सबसे बड़ीऊर्जा है।
  • वर्तमान में जीना सबसे ज्यादा मायने रखता है, इस क्षण को जियो, हर पल अभी है। यह इस क्षण के तुम्हारे विचार और कर्म हैं, जो तुम्हारे भविष्य को बनाते हैं। तुम अपने अतीत से जो रूपरेखा बनाते हो, वही तुम्हारे भविष्य के मार्ग की रूपरेखा बनाते हैं।

मृत्यु

साईं बाबा अपनी घोषणा के अनुरूप 15 अक्टूबर1918 को विजया दशमी के विजय-मुहू‌र्त्त में शारीरिक सीमा का उल्लंघन कर निजधाम प्रस्थान कर गए। इस प्रकार 'विजया दशमी' उनका महासमाधि पर्व बन गया। कहते हैं कि आज भी सच्चे साईं-भक्तों को बाबा की उपस्थिति का अनुभव होता है।