दामोदर को सांप के काटने और साईं बाबा  
द्वारा बिना किसी मंत्र-तंत्र अथवा दवा-दारू के उसके शरीर से जहर का  
बूंद-बूंद करके टपक जाना, सारे गांव में इसी की ही सब जगह पर चर्चा हो रही 
 थी|
गांव के कुछ नवयुवकों 
 ने द्वारिकामाई मस्जिद में आकर साईं बाबा के अपने कंधों पर बैठा लिया और  
उनकी जय-जयकार करने लगे| सभी छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष साईं बाबा की  
जय-जयकार के नारे पूरे जोर-शोर से लगा रहे थे|
"हम
  तो साईं बाबा को इसी तरह से सारे गांव में घुमायेंगे|" नयी मस्जिद के  
मौलवी ने कहा - "मैंने तो पहले ही कह दिया था कि यह कोई साधारण पुरुष नहीं 
 हैं| यह इंसान नहीं फरिश्ते हैं| यह तो शिरडी का अहोभाग्य है कि जो यह 
यहां  पर आ गए हैं|"
"हां, हां, हम साईं बाबा का जुलूस निकालेंगे|" अभी उपस्थित व्यक्ति एक स्वर में बोले|
फिर उसके बाद सब जुलूस निकालने की तैयारी करने में लग गये|
यह
  सब देख-सुनकर पंडितजी को बहुत ज्यादा दुःख हुआ| पूरे गांव में केवल वे ही
  एक ऐसे व्यक्ति थे जो नये मंदिर के पुजारी के साथ-साथ पुरोहिताई और वैद्य
  का भी कार्य किया करते थे| यह बात उनकी समझ में जरा-सी भी नहीं आयी कि 
साईं  बाबा के हाथ फेरने से ही जहर कैसे उतर सकता है? इस बात को वह ढोंग 
मान रहे  थे| इसमें उनको साईं बाबा की कुछ चाल नजर आ रही थी| वह गांव के 
लोगों का  इलाज भी किया करते थे| साईं बाबा के प्रति उनके मन में ईर्ष्या 
पैदा हो गयी  थी|
साईं बाबा
 एक चमत्कारी  पुरुष हैं, पंडितजी इस बात को मानने के लिए बिल्कुल भी तैयार
 न थे| वह  ईर्ष्या में भरकर साईं बाबा के विरुद्ध उल्टी-सीधी बातें बोलने 
लगे|
सब जगह केवल साईं बाबा की ही चर्चा थी| पर, पंडितजी की ईर्ष्या का कोई ठिकाना न था|
"जरूर कोई महात्मा हैं|"
"सिद्धपुरुष हैं|"
"देखो न ! कैसे-कैसे चमत्कार करता है !"
अब
  आस-पास के लोग जिन्होंने साईं बाबा के चमत्कार के बारे में सुना, उनके  
दर्शन करने के लिए आ रहे थे| उधर पंडितजी न नाग के जहर को शरीर से  
बूंद-बूंद कर टपक जाने की बात सुनी तो आगबबूला हो गये-और गांव के चौपाल पर 
 बैठे लोगों से बोले-
"यह  
गांव ही मूर्खों से भरा पड़ा है|" पंडित ने क्रोध से कांपते हुए कहा - "वह 
 कल का मामूली छोकरा भला सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है ? कई-कई जन्म बीत जाते
  हैं साधना करते हुए, तब कहीं जाकर सिद्धि प्राप्त होती है| नाग का जहर तो
  संपेरे भी उतार देते हैं| मुझे तो पहले ही दिन पता चल गया था कि वह कोई  
संपेरा हैं| एक संपेरों की ही ऐसी कौम होती है, जिनका कोई दीन-धर्म नहीं  
होता| वह भला सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है?"
"आप
  बिल्कुल ठीक कहते हैं पंडितजी!"-एक व्यक्ति ने कहा - "पन्द्रह-सोलह वर्ष 
 का छोकरा है और गांव वालों ने उसका नाम रख दिया है 'साईं बाबा'| यह साईं  
बाबा का क्या अर्थ होता है, पंडितजी ! जरा हमें भी समझाइये?"
"इसका
  अर्थ तो तुम उन्हीं लोगों से जाकर पूछो, जिन्होंने उसका यह नाम रखा है|" 
 पंडितजी ने ईर्ष्या में भरकर कहा| फिर रहस्यपूर्ण स्वर में बोले-"जाओ,  
पुरानी मस्जिद में देखकर आओ, वहां पर क्या हो रहा है?"
तभी
  अचानक झांझ, मदृंग, ढोल और अन्य वाद्यों की आवाज तथा लोगों का कोलाहल  
सुनकर पंडितजी चौंक गये| बाजों की आवाज के साथ-साथ जय-जयकार के नारे भी  
सुनायी दे रहे थे|
उन्होंने देखा, सामने से एक जुलूस आ रहा था|
"पंडितजी! बाहर आइए|साईं बाबा की शोभायात्रा आ रही है|" एक व्यक्ति ने बड़े जोर से चिल्लाकर कहा|
पंडितजी
  उस नजारे को देखकर बड़े हैरान थे| पालकी के आगे-आगे कुछ गांववासी झांझ,  
मंजीरे और ढोल बजाते हुए चल रहे थे| उनके पीछे एक पालकी में साईं बाबा बैठे
  थे| दामोदर और उसके साथियों ने पालकी अपने कंधों पर उठा रखी थी| उनके साथ
  गांव के पटेल भी थे और नई मस्जिद के इमाम भी| साथ ही प्रतिष्ठित लोगों की
  भीड़ भी चल रही थी| इन सबके साथ गांव की बहुत सारी महिलाएं भी थीं| ऐसा  
लगता था कि जैसे सारा गांव ही उमड़ पड़ा हो| सभी साईं बाबा की जय-जयकार कर 
 रहे थे|
साई बाबा का ऐसा  
स्वागत-सत्कार देखकर पंडितजी के होश उड़ गये, मारे क्रोध के बुरा हाल हो  
गया| वह गला फाड़कर चिल्लाकर बोले-"सत्यानाश! ये ब्राह्मण के लड़के इस  
संपेरे के बहकावे में आ गए हैं| यह बहुत बड़ा जादूगर है| नौजवानों को इसने 
 अपने वश में कर रखा है| यह बहुत बड़ा जादूगर है| नौजवानों को इसने अपने वश
  में कर रखा है| देख लेना, एक दिन यह सब भी इसी की तरह शैतान बन जायेंगे| 
हे  भगवान! क्या मेरे भाग्य में यह दिन भी देखना बाकी था?"
जैसे-जैसे
  शोभायात्रा आगे बढ़ती जा रही थी और उसमें शामिल होने वाले लोगों की भीड़ 
 भी बढ़ती जा रही रही, साईं बाबा कि पालकी के आगे-आगे नवयुवक नाचते, गाते 
और  जय-जयकार से वातावरण को गूंजा रहे थे|
अपने-अपने घरों के दरवाजों पर खड़ी स्त्रियां फूल बरसाकर शोभायात्रा का स्वागत कर रही थीं|
पंडितजी
  से साईं बाबा का यह स्वागत देखा न गया| वह गुस्से में पैर पटकते हुए घर 
के  अंदर चले गए और दरवाजा बंद करके, कमरे मैं जाकर पलंग पर लेट गए और  
मन-ही-मन साईं बाबा को कोसने लगे| कैसा जमाना आ गया है, इस कल के छोकरे ने 
 तो सारे गांव को बिगाड़कर रख दिया है| पंडितजी को साईं बाबा अपना सबसे 
बड़ा  दुश्मन दिखाई दे रहे थे| जुलूस गांवभर में घूमता रहा और हर जबान पर 
साईं  बाबा की चर्चा होती रही|
शोभायात्रा घूमकर वापस लौट आयी|साईं बाबा के पास कुछ ही व्यक्ति रह गए| वह चुपचाप आँखें बंद किये बैठे थे|
"बाबा,
  जब आप पहले-पहल गांव में आए थे और लोगों ने आपसे पूछा था कि आप कौन हैं, 
 तो आपने कहा था, मैं साईं बाबा हूं| साईं बाबा का क्या अर्थ होता है?"  
दामोलकर ने पूछा| उसके इस प्रश्न पर साईं बाबा मुस्करा दिए|
"देखो,
  दो अक्षर का शब्द है-सा और ईं| सा का अर्थ है देवी और ईं का अर्थ होता है
  मां| बाबा का अर्थ होता है पिता| इस प्रकार साईं बाबा का अर्थ  
हुआ-देवी,माता और पिता|"
"जन्म
  देने वाले माता-पिता के प्रेम में स्वार्थ की भावना निहित होती है| जबकि 
 देवी माता-पिता के स्नेह में जरा-सा भी स्वार्थ नहीं होता है| वह तुम्हारा
  मार्गदर्शन करते हैं और तुम्हें प्रेरणा देते हैं| आत्मदर्शन, आत्मज्ञान 
की  सीधी और सच्ची राह दिखाते हैं|" साईं बाबा ने समझाते हुए कहा - "वैसे 
साईं  बाबा को प्रयोग परमपिता परमात्मा, ईश्वर, अल्लाताला और मालिक के लिए 
भी  किया जाता है|"
"आप 
वास्तव  में ही साईं बाबा हैं|" सभी उपस्थित लोगों ने एक स्वर में कहा - 
"आपने हम  सभी को सही रास्ता दिखाया है| सबको आपने ईश्वर की भक्ति के मार्ग
 पर लगाया  है|"
"यह मनुष्य
 शरीर न  जाने कितने पिछले जन्मों के पुण्य कर्मों को करने के पश्चात् 
प्राप्त होता  है| इस संसार में जितने भी शरीरधारी हैं, उन सबमें केवल 
मनुष्य ही सबसे  अधिक बुद्धिमान प्राणी है| वह इस जन्म में और भी अधिक 
पुण्य कर्म कर सकता  है| उसके पास  बुद्धि है, ज्ञान है और इसके बावजूद भी 
वह मानव शरीर पाकर  मोह-माया और वासना के दलदल में फंस जाता है| इससे 
छुटकारा पाना असंभव हो  जाता है| उसका मन रात-दिन वासना और स्वार्थ में 
लिप्त रहता है| धन-सम्पत्ति  पाने के लिए वह कैसे-कैसे कार्य नहीं करता है|
 मनुष्य को इस दलदल से यदि  कोई मुक्ति दिला सकता है, तो वह है गुरु... 
केवल सद्गुरु|
लेकिन  आज के
 समय में सच्चा गुरु कहा मिलता है| सच्चे इंसान ही बड़ी मुश्किल से  मिलते 
हैं| फिर सच्चे गुरु का मिलना तो और भी अधिक कठिन है|"
"सच्चे गुरु कि पहचान क्या है साईं बाबा?" एक व्यक्ति ने पूछा|
"सच्चा
  गुरु वही है, जो शिष्य को अच्छाई-बुराई का भेद बता सके| उचित-अनुचित का  
अंतर बता सके| आत्मप्रकाश, आत्मज्ञान दे सके| जिसके मन में रत्तीभर भी  
स्वार्थ की भावना न हो, जो शिष्य को अपना ही अंश मानता हो| वही सच्चा  
सद्गुरु है|" साईं बाबा ने बताया और फिर अचानक उन्हें जैसे कुछ याद आया, तो
  वह बोले - " आज तात्या नहीं आया क्या?"
"बाबा, मैं आपको बताना ही भूल गया| तात्या को आज बहुत तेज बुखार आया है|"
"तो
  आओ चलो, तात्या को देख आयें|" साईं बाबा ने अपने आसन से उठते हुए कहा| 
साथ  ही अपनी धूनी में से चुटकी भभूति अपने सिर के दुपट्टे में बांधकर चल 
पड़े|